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आवाज की दुनिया के बेताज बादशाह मोहम्मद रफी पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह गांव में 24 दिसंबर 1924 को मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार में जन्मे

मोहम्मद रफी एक फकीर के गीतों को सुना करते थे

 

 

NAVODAYA DHAROHAR, DELHI (ARVIND KUMAR); 25/07/2024

DELHI: आवाज की दुनिया के बेताज बादशाह मोहम्मद रफी को पाशर्व गायन करने की प्रेरणा एक फकीर से मिली थी पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह गांव में 24 दिसंबर 1924 को मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार में जन्मे रफी एक फकीर के गीतों को सुना करते थे जिससे उनके दिल में संगीत के प्रति एक अटूट लगाव पैदा हो गया रफी को बड़े भाई हमीद ने मोहम्मद रफी के मन में संगीत के प्रति बढ़ते रुझान को पहचान लिया था और उन्हें इस राह पर आगे बढ़ने में प्रेरित किया। लाहौर में रफी संगीत की शिक्षा उस्ताद अब्दुल वाहिद खान से लेने लगे और साथ ही गुलाम अली खान से भारतीय शास्त्रीय संगीत भी सीखना शुरू कर दिया। हमीद रफी को लेकर के एल सहगल संगीत के कार्यक्रम में गए लेकिन बिजली नहीं रहने के कारण के एल सहगल ने गाने से इनकार कर दिया हमीद ने कार्यक्रम के संचालक से गुजारिश की वह उनके भाई रफीक रफी को गाने का मौका दें संचालक के राजी होने पर रफी ने पहली बार 13 वर्ष की उम्र में अपना पहला गीत स्टेज पर दर्शकों के बीच पेश किया दर्शकों के बीच बैठे संगीत कार श्याम सुंदर को उनका गाना अच्छा लगा और उन्होंने रफी को मुंबई आने के लिए न्यूता दिया श्याम सुंदर के संगीत निर्देशन में रफी ने अपना पहला गाना सोनिए नी हीरिए नी पाशर्व गायिका जीनत बेगम के साथ एक पंजाबी फिल्म गुल बलोच के लिए गाया। वर्ष 1944 में नौशाद के संगीत निर्देशन में उन्होंने अपना पहला हिंदी गाना हिंदुस्तान के हम हैं पहले आपके लिए गया वर्ष 1949 में नौशाद के संगीत निर्देशन में दुलारी फिल्म में गाए गीत सुहानी रात ढल चुकी के जरिए वह सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंच गए और इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। दिलीप कुमार देवानंद शम्मी कपूर राजेंद्र कुमार शशि कपूर राजकुमार जैसे नाम चिन गायको की आवाज केह जाने वाले रफी अपने संपूर्ण सिने कैरियर में लगभग 700 फिल्मों के लिए 26000 से भी ज्यादा जीत गाए। मोहम्मद रफी फिल्म इंडस्ट्री में मृदु स्वभाव के करण जाने जाते थे लेकिन एक बार उनकी कोकिल कंठ लता मंगेशकर के साथ अनबन हो गई थी मोहम्मद रफी ने लता मंगेशकर के साथ सैकड़ो गीत गए थे लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया था जब रफी ने लता से बातचीत करनी बंद कर दी थी लता मंगेशकर गानों पर रॉयल्टी की पक्षधर थी। जबकि रफी ने कभी भी रॉयल्टी की मांग नहीं की रफी साहब मानते थे की एक बार जब निर्माताओ ने गाने के पैसे दे दिए तो रॉयल्टी किस बात की मांगी जाए दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ा की मोहम्मद रफी लता मंगेशकर के बीच बातचीत भी बंद हो गई और दोनों ने एक साथ गीत गाने से इनकार कर दिया हालांकि 4 वर्ष के बाद अभिनेत्री नरगिस के प्रियास से दोनों ने एक साथ एक कार्यक्रम में दिल पुकारे गीत गाया मोहम्मद रफी ने हिंदी फिल्मों के अलावा मराठी और तेलुगू फिल्मों के लिए भी गाने गए मोहम्मद रफी अपने कैरियर में छह बार फिल्म फैयर अवार्ड से सम्मानित किए गए वह वर्ष 1965 में रफी पदम श्री पुरुष कार से भी सम्मानित किए गए। मोहम्मद रफी बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन के बहुत बड़े प्रशंसक थे, मोहम्मद रफी फिल्म देखने के शौकीन नहीं थे लेकिन कभी-कभी वह फिल्म देख लिया करते थे एक बार मोहम्मद रफी ने अमिताभ बच्चन की फिल्म दीवार देखी थी दीवार देखने के बाद रफी अमिताभ के बहुत बड़े प्रशंसक बन गए, 1980 में प्रदर्शित फिल्म नसीब में रफी को अमिताभ के साथ युगल गीत चल चल मेरे भाई गाने का अवसर मिला अमिताभ के साथ इस गीत को गाने के बाद रफी बेहद खुश हुए थे जब रफी साहब अपने घर पहुंचे तो उन्होंने अपने परिवार के लोगों को अपने पसंदीदा अभिनेता अमिताभ के साथ गाने की बात को खुश होते हुए बताया था अमिताभ के अलावा रफी को शम्मी कपूर और धर्मेंद्र की फिल्में भी बेहद पसंद आती थी मोहम्मद रफी को अमिताभ धर्मेंद्र की फिल्म शोले बेहद पसंद थी और उन्होंने इसे तीन बार देखा था 30 जुलाई 1980 को आसपास फिल्म के गाने शाम क्यों उदास है दोस्त गाने के पूरा करने के बाद जब रफी ने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल से कहा शूडआई लीव जिसे सुनकर लक्ष्मीकांत प्यारेलाल आश्चर्य में पड़ गए क्योंकि इससे पहले रफी ने उनसे कभी इस तरह की बात नहीं की थी अगले दिन 31 जुलाई 1980 को मोहम्मद रफी को दिल का दौरा पड़ा और वह इस दुनिया को ही छोड़ कर चले गए।✍️

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